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रहस्यमाई चश्मा भाग - 15




आखिर वह शुभ घड़ी आ ही गयी जब सुयश को डॉ रणदीप के अस्पताल से स्वस्थ होने के बाद छुट्टी मिलने वाली थी मंगलम चौधरी के आदेशानुसार हवेली का रंग रोगन किया गया उंसे विधवत सजाया गया जैसे की हवेली में किसी बहुत खास का आगमन हो रहा हो मंगलम चौधरी स्वंय सुयश को लेने बग्घी पर सवार हुए पीछे पीछे उनके अस्तबल के घोड़े हथिशाल के हाथी करो पर सवार कारिंदे गाजे बाजे आदि आदि जैसे कोई जुलूस किसी अति विशिष्ट राजनेता का स्वागत करने जा रहा हो ।


पूरा लाव लश्कर गाजे बाजे के साथ डॉ रणदीप झा के अस्पताल पहुंचा मंगलम चौधरी अपनी बघ्घी से उतरे और बागी लोग अस्पताल के सामने खड़े रहे मंगलम चौधरी सीधे डॉ रणदीप झा के पास पहुंचे और बोले कहां है मेरे नज़र का नूर नज़र का नूर इसलिए कि इसी नौजवान ने रेलवे लाइन पर गिरा मेरा चश्मा उठाया था और अपनी जिंदगी को जोखिम में डाला था चश्मा तो दोबारा बन जाता मगर इसे कुछ हो जाता तो मैं स्वयं कि नज़रों में गिर जाता इस नौजवान ने अपना दाहिना हाथ गवाया है! 


जिससे इसका जीवन अधूरा हो चुका है। मंगलम चौधरी आज डॉ रणदीप झा को हाज़िर नाजिर मानकर स्वंय संकल्पित होता है कि सुयश कि जिंदगी को पूर्णता मैं प्रदान करूंगा डॉ रणदीप झा मंगलम चौधरी की भाषा भाव शारिरिक भाषा को सुन देख भाव विभोर हो गए डॉ के लिये हर बीमार व्यक्ति सिर्फ एक बीमार शरीर होता है जिसे स्वस्थ कर आत्मा से जोड़े रखने के लिए प्राण पण से कोशिश करता है लेकिन मंगलम चौधरी जैसे कठोर एव व्यवसायिक व्यक्तित्व के बदलते स्वरूप को देख डॉ रणदीप स्वंय को भी नही संभाल सके और रुंधे कंठ से बोले चौधरी साहब आज मुझे अपने चिकित्सक होने पर गर्व है क्योंकि आज मिथिलांचल का अभिमान मंगलम चौधरी जी ने मानवीय मूल्यों के शिखर को भी बौना बना दिया अपने आदर्श से आपने सुयश के लिये जो भी किया है शायद आज के जमाने मे उसके पिता के बस कि बात तो विल्कुल ही नही थी यह आप ही के लिए संम्भवः है आप धन्य है और मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि सुयश का आपसे कोई न कोई रिश्ता है यह भविष्य ही बताएगा की मैं कितना सही हूँ।


डॉ रणदीप झा ने चौधरी साहब को बताया कि सुयश के अस्पताल से डिस्चार्ज करने कि आवश्यक कार्यवाही पूर्ण कि जा चुकी है आप सुयश को ले जा सकते है ।


मंगलम चौधरी ने डॉ रणदीप से पूछा अस्पताल का सुयश कि चिकित्सा पर व्यय कितना हुआ ? डॉ रणदीप ने कहा चौधरी साहब पूरे इलाज के दौरान आपने समय समय पर इलाज पर हुए व्यय का भुगतान कर दिया है आज कोई भुगतान नही लूंगा आपकी जो इच्छा हो अस्पताल के लिये करने की अवश्य करे ताकि किसी भी जरूरतमंद के लिए यह अस्पताल मददगार साबित हो सके यह आपका उस हर जरूरत मंद को दिया गया आशीर्वाद होगा जो इस अस्पताल में आएगा मंगलम चौधरी ने कहा डॉ साहब आपकी इच्छा का सम्मान आम जन कि आकांक्षा का सम्मान है मैं आपके अस्पताल को समयानुसार आधुनिक सुविधाओं के लिए जो भी खर्च होगा दूंगा आप स्वयं एक विधिवत विवरण बना कर दे मुझे मैं स्वयं कुछ दिन बाद आऊँगा ।

फिर डॉ रणदीप के साथ मंगलम चौधरी सुयश के पास गए बोले सुयश चलो अब तुम्हे मैं लेने आया हूँ सुयश बोला माँ नही आई चौधरी साहब बोले चलो तो माँ भी आ जायेगी सुयश बोला मैं जब भी आपसे पूछता हूँ आप यही कहते है आखिर कब तक आएगी माँ मंगलम चौधरी बोले सुयश तुम्हे मुझ पर भरोसा है तो चलो माँ भी अवश्य आएगी सुयश निशब्द हो गया डॉ रणदीप ने कहा शाबास सुयश मुझे विश्वास है तुम नौजवानों के लिए मिशाल बनोगे मंगलम चौधरी डॉ रणदीप और सुयश एक साथ अस्पताल के मुख्य द्वार पर ज्यो ही पहुंचे अस्पताल के बाहर खड़ी भीड़ पुष्प वर्षा करने लगी जैसे जैसे अस्पताल कि सीढियां तीनो उतरने लगे वैसे वैसे पुष्प वर्षा और जोरो से होने लगी डॉ रणदीप मंगलम चौधरी और सुयश एक साथ चौधरी साहब की चिरपरिचित बग्घी के पास पहुंचे डॉ रणदीप ने स्वंय पहले सुयश को बग्घी में बैठाया सुयश के बैठने के बाद मंगलम चौधरी स्वंय बग्घी पर सवार हुए,,,,


चौधरी साहब के बैठते ही मन्नू मियां बग्घी हांक देते है बग्घी आगे आगे बजते गाजे बाजे हाथी घोड़े कारे पीछे पीछे पूरे दरभंगा शहर में घूमते हुए चौधरी साहब सुयश के साथ जा रहे थे जिस गली से गुजरते महिलाएं एक दूसरे से पूछती क्या बात है? चौधरी साहब कि हवेली में कोई खास जलसा होने वाला है सड़को बाजारों पर दुकानदार व्यवसायी खड़े होकर चौधरी साहब का अभिवादन करते चौधरी साहब हाथ जोड़कर हाथ उठाकर सभी का जबाब देते सुबह बारह बजे चौधरी साहब का लाव लश्कर अस्पताल से निकला था सुयश को लेकर और हवेली पहुचने पर सूरज ढलने को आया दिवस का अवसान होने को था संध्या ने दस्तक दे दिया था!

चौधरी साहब ज्यो ही सुयश को लेकर हवेली पहुंचे हवेली असख्य दियो से जगमगा उठी महिलाओं ने चौधरी साहब कि बग्घी के पास ही चौधरी साहब एव सुयश कि आरती उतारी हवेली पर स्वागत की जिम्मेदारी सिंद्धान्त पर थी उसने चौधरी साहब के आदेशानुसार सभी व्यवस्था दुरुस्त एव चाक चौबंद के साथ साथ शानदार कर रखी थी चौधरी साहब स्वंय सुयश को अपने साथ लेकर हवेली में दाखिल हुए सुयश यह सब देख कर स्तब्ध रह गया उंसे समझ ही नही आ रहा था कि भाग्य नियति उसके साथ क्या खेल खेल रही है वह माँ के ही विषय मे सोच रहा था पूरी रात हवेली पर सुयश के आने की खुशी में उत्सव चलता रहा ।

दूसरे दिन का सूरज सुयश के लिए नए उत्साह के जीवन का सांचार लेकर अपनी सम्पूर्णता के साथ उदित हुआ उंसे जगाने सुखिया आया जिसे मंगलम चौधरी ने भेजा था सुयश पहली बार अस्पताल से बाहर अपने कार्य स्वंय करने कि कोशिश कर रहा था क्योकि उसका दाहिना हाथ उसके साथ नही था जिससे उसे पढ़ने लिखने की आदत बचपन से थी उंसे कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था लेकिन चौधरी साहब के स्नेह सम्मान ने उसकी शक्ति को नए उत्साह से भर दिया था वह अपने बाए हाथ से ही कार्यो को ऐसे करने कि कोशिश करता जैसे कि उसका शरीर पूर्ण हो अपूर्णता के कोई लक्षण सुयश के व्यवहार कार्यो से नही परिलक्षित हो रहा था वह स्नान एव माँ का ध्यान वंन्दन करने के बाद चौधरी साहब के कमरे में दाखिल हुआ,,,,,


 उंसे देखते ही चौधरी साहब ने खड़े होकर उसे गले लगा लिया और बोले सुयश दुनिया मे आज तक दो ही जगह मैं अति अधीर और भाऊक हुआ हूँ एक तो तुम्हे देखर एव अपनी माँ के लिए तुममें कोई विशेषता तो है माँ कि बात सुनते ही सुयश बोला पता नही मेरी माँ किस हाल में है जिस सुबह मैं नैकरी के लिए साक्षात्कार हेतु घर से निकला था उस रात माँ ने कुछ भी नही खाया था और मेरे निकलते समय पड़ोस से लाई चना मांग कर दिया था किस तरह होगी मेरे बिना चौधरी साहब ने सुयश को ढांढस देते हुए कहा चिंता मत करो जो भी होने वाला है वह अच्छा ही होगा तुम स्वंय जाओगे अपनी माँ को लेने कुछ दिनों बाद अभी अस्पताल से कल ही आये हो सामान्य जीवन जीने के ढर्रे पर लौट आओ सुयश ने कहा जैसा आप कहे और वह चौधरी साहब के पास बैठकर अपने विषय मे बताने लगा उसने चौधरी साहब को बताया कि उसके नाना पूर्वी पाकिस्तान के शेर पुर के बहुत बड़े आदमी थे,,,,,,,


उसकी माँ उनकी एकलौती बेटी थी दो भाइयों की लाडली आजादी के समय हिंदुस्तान पाकिस्तान के बंटवारे के समय नाना का पूरा कारोबार खत्म तो हुआ ही परिवार भी खत्म हो गया सिर्फ माँ ही बची किसी तरह से वह हिंदुस्तान पहुंची और नाना के पुश्तेनी गांव लेकिन बदनसीबी ने उसका पीछा वहाँ भी नही छोड़ा गांव वालों ने मॉ को गांव में रहने ही नही दिया तब मॉ को गांव के बाहर मंदिर के पुजारी ने मंदिर के पास पलान बना कर रहने के लिए दिया गांव वाले माँ को गांव में क्यो नही रहने दिया यह बात मैंने माँ से जानने की बहुत कोशिश की मगर उसने कभी नही बताया मेरा जन्म भी मंदिर की उसी झोपडी में हुआ मंगलम चौधरी बड़े ध्यान से सुयश कि बातों को सुन रहे थे उन्होंने एकाएक सुयश से प्रश्न किया कि क्या तुम्हारी माँ ने कभी तुम्हे तुम्हारे पिता के विषय मे नही बताया सुयश बोला पूछा हर जतन उपाय किये जिससे कि माँ मेरे पिता के विषय मे कुछ भी बताये लेकिन सिर्फ इतना कहती बेटा तुम्हारे पिता इस युग मे देवता के सामान है बहुत बड़े आदमी इसके अतिरिक्त उसने कभी कुछ नही बताया और कभी भी अपनी परेशानियों तिरस्कार अपमान के लिए उन्हें जिम्मेदाए नही माना वह सदा यही कहती दुनियां को क्या पता मेरा देवता कैसा है?


जारी है




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4 Comments

kashish

09-Sep-2023 07:58 AM

Nice part

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Abhilasha Deshpande

13-Aug-2023 10:22 PM

Nice part

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अदिति झा

17-Jul-2023 12:08 PM

Nice 👍🏼

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